संसद की सदस्यता

संसद की सदस्यता

 संसद सदस्य की अर्हता :-

संविधान द्वारा निम्न अर्हताएं निर्धारित की गयी हैं :- 
  • भारत का नागरिक होना चाहिए।
  • राज्यसभा के लिए कम से कम 30 वर्ष एवं लोकसभा के लिए 25 वर्ष की आयु पूर्ण होनी चाहिए।
  • निर्वाचन आयोग द्वारा प्राधिकृत व्यक्ति के सम्मुख शपथ लेना चाहिए।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 द्वारा निर्धारित अर्हताएं :-
  • प्रारम्भ में व्यवस्था थी कि लोकसभा एवं राज्यसभा हेतु जिस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित होना चाहते हैं वहां का पंजीकृत मतदाता होना जरुरी था लेकिन राज्यसभा के लिए सरकार ने 2003 में बाध्यता समाप्त कर दी है।
  • यदि कोई व्यक्ति आरक्षित सीट पर चुनाव लड़ना चाहता है तो उसे किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में अनुसूचित जाति या जनजाति का सदस्य होना चाहिए। एवं अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सदस्य उस सीट के लिए चुनाव लड़ सकते हैं जो उनके लिए आरक्षित नहीं है।

संसद सदस्य कि निरर्हताएँ :-

संविधान में संसद सदस्य के लिए निरर्हताएँ  :-
  • लाभ के पद पर होने पर संसद सदस्य नहीं बन सकता। (संसद द्वारा तय कोई पद एवं मंत्री पद छोड़ कर)। 
  • यदि वह विकृत चित्त का है एवं न्यायालय ने ऐसी घोषणा कर दी है। 
  • यदि वह अनुन्मोचित दिवालिया है। 
  • यदि वह भारत का नागरिक नहीं है या स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता अर्जित कर ली है।   
  • यदि वह संसद द्वारा बनायीं गयी विधि से अयोग्य घोषित कर दिया जाये। 

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 द्वारा निर्धारित निरर्हताएँ  :-
  • वह चुनावी अपराध या चुनाव में भ्रष्टाचार के तहत दोषी करार दिया गया हो। 
  • उसे किसी अपराध में दो वर्ष या उससे अधिक की सजा हुयी हो लेकिन प्रतिबंधात्मक निषेध विधि के तहत किसी व्यक्ति का बंदीकरण अयोग्यता नहीं है। 
  • निर्धारित समय अवधि के अंदर चुनावी खर्च का ब्यौरा देने में असफल न रहा हो। 
  • वह निगम में लाभ के पद पर हो जिसमें सरकार का 25 प्रतिशत हिस्सा हो। 
  • उसे भ्रष्टाचार एवं निष्ठाहीन होने के कारण सरकारी सेवाओं से बर्खास्त किया गया हो। 
  • उसे विभिन्न समूहों में शत्रुता बढ़ाने एवं रिश्वतखोरी के लिए दण्डित किया गया हो। 
  • उसे छुआछूत, दहेज़, सती जैसे सामाजिक अपराधों के प्रसार करने में संलिप्त पाया गया हो। 
उपरोक्त संसद सदस्य की निरर्हताओं संबंधी प्रश्न पर राष्ट्रपति का फैसला अंतिम होगा, एवं राष्ट्रपति को निर्वाचन आयोग की राय लेकर कार्य करना चाहिए। 

दल-बदल के आधार पर निरर्हता :-
संविधान के अनुसार यदि संसद सदस्य 10वीं अनुसूची के प्रावधानों के अनुसार दल-बदल का दोषी पाया जाता है तो वह संसद की सदस्यता से अयोग्य घोषित हो जाता है। दल-बदल कानून में निम्न प्रावधान निरर्हता हेतु दिए गए हैं :-
  • अगर वह स्वेच्छा से उस राजनीतिक दल का त्याग करता है, जिस दल के टिकट पर उसे चुना गया है। 
  • अगर वह अपने राजनीतिक दल द्वारा दिए निर्देशों के विरुद्ध सदन में मतदान करता है या नहीं करता है। 
  • अगर निर्दलीय चुना गया सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है। 
  • अगर कोई नामित या नाम निर्देशित सदस्य 6 महीने के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है। 
  • दसवीं अनुसूची के तहत निरर्हता के प्रश्नों का निपटारा राज्यसभा में सभापति एवं लोकसभा में लोकसभा अध्यक्ष करता है एवं इस निर्णय की न्यायायिक समीक्षा नहीं की जा सकती (1992 उच्चतम न्यायालय)। 

सदस्यों का स्थान रिक्त होना :- 

दोहरी सदस्यता के कारण -
कोई व्यक्ति एक समय में संसद के दोनों सदनों का सदस्य नहीं हो सकता है। इसके लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951  में निम्न प्रावधान किये गए हैं :-
  • यदि कोई व्यक्ति संसद के दोनों सदनों के लिए चुन लिया जाता है तब उसे 10 दिन के अंदर तय करना होगा कि किस सदन में रहना है। सूचना न देने पर राज्यसभा में उसकी सीट खली हो जाएगी। 
  • अगर किसी सदन का सदस्य दूसरे सदन का सदस्य चुन लिया जाता है तब पहले वाले सदन में उसका पद रिक्त हो जाता है। 
  • अगर कोई व्यक्ति एक ही सदन में दो सीटों पर चुना जाता है तो उसे स्वेच्छा से किसी एक सीट को खाली करने का अधिकार है, अन्यथा दोनों सीटें रिक्त हो जाती हैं। 
  • यदि कोई व्यक्ति एक ही समय में संसद एवं राज्य विधानमंडल के लिए निर्वाचित होता है तो उसे 14 दिन के अंदर राज्य विधानमंडल से सीट खाली करना होगा अन्यथा संसद में उसकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
निरर्हता के कारण - 
  • यदि कोई व्यक्ति ऊपर वर्णिंत निरहर्ता से ग्रस्त पाया जाता है तो उसका स्थान रिक्त हो जाता है। 
पद त्याग के कारण - 
  • यदि कोई सदस्य लोकसभा में अध्यक्ष एवं राज्यसभा में सभापति को त्यागपत्र देता है और स्वीकार होने पर उसका पद रिक्त हो जाता है। हालांकि सभापति या अध्यक्ष त्यागपत्र को अस्वीकार भी कर सकते हैं यदि उन्हें लगता हो कि स्वेच्छा से नहीं दिया गया। 
अनुपस्थिति के कारण - 
  • यदि सदन का सदस्य सदन कि अनुमति के बिना 60 दिन से ज्यादा समय तक सदन की सभी बैठकों में अनुपस्थित रहता है तब सदन उसका पद रिक्त घोषित कर सकता है। एवं 60 दिनों की अवधि में लगातार चार दिनों से अधिक अवधि के स्थगन या सत्रावसान को शामिल नहीं किया जाता है। 
स्थान रिक्त होने के अन्य कारण -
  • यदि न्यायालय उस चुनाव को अमान्य या शून्य करार देता है। 
  • यदि उसे सदन द्वारा निष्कासित कर दिया जाता है। 
  • यदि वह राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति चुन लिया जाता है। 
  • यदि उसे राज्य का राज्यपाल बना दिया जाता है। 
                यदि कोई अयोग्य व्यक्ति संसद में निर्वाचित हो जाता है तो संविधान के किसी प्रावधान द्वारा उसके चुनाव को शून्य या अमान्य घोषित नहीं किया जा सकता। ऐसे मुद्दों की जन प्रतिनिधित्व अधिनियम द्वारा सुलझाया जाता है। इसके तहत उच्च न्यायालय चुनाव को अमान्य घोषित कर सकता है तथा असंतुष्ट व्यक्ति इस निर्णय के खिलाफ उच्चतम  न्यायालय जा सकता है। 

शपथ या प्रतिज्ञान :-

  • संसद के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य अपना पद ग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति या उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के समक्ष शपथ लेता है एवं उस पर हस्ताक्षर करता है। 
  • जब तक संसद सदस्य शपथ नहीं लेते तब तक सदन की किसी बैठक में हिस्सा नहीं ले सकते हैं और न ही मत दे सकते हैं। एवं संसद के विशेषाधिकारों एवं उन्मुक्तियों से वंचित रहते हैं। 

वेतन एवं भत्ते :-

  • संसद के दोनों सदनों के सदस्यों को संसद द्वारा निर्धारित वेतन एवं भत्ते मिलते हैं। संविधान में संसद सदस्यों के लिए पेंशन का कोई प्रावधान नहीं है लेकिन संसद अपने सदस्यों को पेंशन देती है। 
  • इसके अलावा उन्हें यात्रा सुविधाएँ, मुफ्त आवास, टेलीफोन, वाहन खर्च, चिकित्सा सुविधा आदि भी मिलती है।